स्थानांतरण का बिगुल बजाकर सरकार पद भरना भूली।
माजीद राही की कलम✍️
छबड़ा (माजीद राही)वैसे तो राजस्थान कहने भर को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है लेकिन दूर-दराज के गांव में आज भी शिक्षा,स्वास्थ्य,शुद्ध पेयजल,बिजली,सड़कों की समस्याएं बरकरार है।राजस्थान सरकार ने 5 वर्ष पूरे कर लिए ऐसे ही पिछले समय रही पार्टियों की सरकारों ने समय पूरे किए लेकिन गांवों में समग्र शिक्षा का ढांचा अभी भी अधूरा है भौतिक और शैक्षणिक संसाधनों पर नजर डालें तो राजस्थान का बारां जिला सबसे पिछड़ा नजर आएगा बारां जिले में वैसे तो किशनगंज और शाहबाद को लोग पिछड़ा कहते हैं लेकिन हमारी नजर में छबड़ा और छीपाबडौद सभी दृष्टि से पिछड़े हुए हैं 75 वर्षों की आजादी के बाद भी आज यहां के लोग आर्थिक आजादी से लेकर मानसिक आजादी भी प्राप्त नही कर पाये हैं इसका प्रमुख कारण है कि सदियों से यह क्षेत्र गुलामी का दंश भोग रहा है पहले नवाबों का राज्य था अब लोकतंत्र के नवाबों का राज है इससे पहले अंग्रेजों का राज्य भी यहां के लोग देख चुके हैं और अब 75 सालों से यहां लोकतंत्र का राज्य है यहां अब तक का रिजल्ट ढोल में पोल नजर आता है।बारां जिले में 2 ब्लॉकों को छोड़ 5 ब्लॉकों में सत्ता गरीबों से कोसों दूर है। मतदाता भ्रमित है छबड़ा छीपाबड़ौद राजनीति की दृष्टि से बहुत ही पिछड़े हुए हैं यहां पर बहु-संख्यक जातियां निवास करती है लेकिन राजनीति में उनका प्रतिशत जीरो के बराबर है आज भी छबड़ा-छीपाबड़ौद के दूरदराज के गांव में ना अच्छी सड़के हैं ना 24 घंटे बिजली आती है और ना ही शुद्ध पेयजल की अच्छी व्यवस्था है। शिक्षा और चिकित्सा तो दूर की कौड़ी साबित हो रही है ग्रामीण सड़कों का हाल देखो तो सड़क पर चलने वालों के चेहरे पर धूल के चांद
नजर आएंगे जो राजनेता अपने आपको राजनेता कहते हैं वो लूट के नेता है ग्रामीणों की निगाह में वह नेता नही,लेता है। गरीबों को दबाना और शिक्षा की ज्योति को बुझाना यहां के नेताओं की प्रमुख देन है जगह-जगह गांव में स्कूल तो खोल दिए गए लेकिन उनमें अंग्रेजी तो दूर हिन्दी के शिक्षक भी नहीं है अब सबको अंग्रेजी स्कूल खोल वापस गुलामी की भाषा पढ़ाने जा रही है सरकार,राष्ट्र भाषा हिन्दी घर में ही पराई होकर रह गयीं है।छबड़ा ब्लॉक में सीनियर स्कूल्स में आर्ट्स विषय की भरमार है साइंस और एग्रीकल्चर के विषय ब्लॉक में नही खुल सके है।मात्र आर्ट के विषय लेकर बालक पढ़ रहे हैं जो भविष्य में रोजगार की आस में कागजी डिग्री को ढोते रहेगे और अंत में लौट के बुद्दू घर में चले आएंगे। रोजगार की दृष्टि से बारां जिला बहुत पिछड़ा हुआ है आज भी लोग यहां मनरेगा में गड्ढा खोदते नजर आएंगे।कई पढेलिखे लोग कृषिगत खेतों पर कृषिहर मजदूर बनकर रह गई हैं। पढ़े-लिखे लोगों को बारां जिले में नरेगा के गड्ढों में मेंट बनना पड़ रहा है या फिर अडानी ओर थर्मल पावर प्रोजेक्ट में कम्पनियों में मजदूर बन आना होता है।इधर विद्यालयों में बालक तालाबंदी करते दिखते हैं।नेता और लेता दोनों एक रूप हो शिक्षा के मंदिरों में वोटों के लिए नोटो का आश्वासन देते फिरते है लेकिन बालकों की शिक्षा का प्रबंध कोई नहीं करता।गांव में भी अब शहरों कस्बो की तरह गंदगी के ढेर लग रहे हैं। ग्रामों के पंचायत मुख्यालय मात्र शोभा भर रह गये है ना उनके रोज ताले खुलते है ना कर्मचारी बैठते है।ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर ग्राम सचिव रहते हैं और ना ही पटवारी वहां रहकर काम करते हैं।जन सुविधाओं के अभाव में शिक्षक भी स्कूलों में नहीं रहते और वह भी निकट के कस्बों से अप-डाउन करते हैं बारां जिले का छबड़ा कस्बा और उप खण्ड मुख्यालय से जुड़े अन्य गांव आज भी शिक्षा की ओर अपने कदम नही बढ़ा पा रहे हैं कारण कि गांव में शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त नहीं है कस्बे में निजी शिक्षण संस्थाओं का दौर है जिनमें अपने बालकों को रखना ग्राम वासियों की मजबूरी बन गया है। एक बालक पर लगभग कस्बे में आकर 10,000 मासिक खर्च है। मध्यम श्रेणी का परिवार या निम्न वर्ग का परिवार इतना निजी खर्च नहीं उठा सकता।ग्रामीण बालक कहते हैं की इससे तो अच्छा है कि 12 वीं स्कूल की जगह सरकार सभी स्कूलों को पाँचवीं तक कर दे जिससे 2 शिक्षक पढ़ा लेगें।ऐसे ही सब साक्षर हो कर महानरेगा मजदूर बन जाएगें इस तरह से निरक्षर जनता से नेता वोट लेते रहेंगे और देते रहेंगे यही लोकतंत्र का मीनिंग है ना पानी है ना बिजली है नेता जी जंहा जाएंगें वहां नेता घटियाली आंसू रोयेंगे ओर गरीबों की चौखट पर वोट के लिए ही सिर फोडेगें अब आगे एक दिन युवा क्रांति आएगी और धन्ना सेठों की बर्बादी करके जाएगी। गांवों में कहावत है-जहां सच न चले वहां झूँठ सही जहाँ हक नही मिले वहां लूट सही। आम आदमी ओर जनता अब सब समझ चुकी है।सब आने वाले समय मै लोग कहेंगे नेताओं दूर जाओ गांव में मत आओ गांव की बर्बादी और तुम्हारी आबादी यहीं से चली है और यहीं से अब गिरेगी भी सही।।