मांगरोल तहसील क्षेत्र के किसान फसल के अवशेष को जलाकर वायु प्रदूषित कर रहे हैं वही खेती के जानकार इसे पर्यावरण और भूमि प्रदूषण भी बता रहे हैं। खेती के जानकारों ने बताया कि फसल के अवशेष जलाने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड आदि गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। इससे मनुष्य के साथ उपजाऊ भूमि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आपको बता दें सरकार और प्रशासन ने कई बार किसानों से अपील की है कि फसल कटाई के बाद फसल अवशेषों को रोटावेटर व कृषि यंत्रों के माध्यम से जुताई कर खेत में मिला दें। फसल अवशेषों पर वेस्ट डीकंपोजर या बायो डायजेक्टर के तैयार घोल का छिड़काव करें या फसल अवशेषों को सड़ाने के लिए 20-25 किग्रा नत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर कल्टीवेटर या रोटावेटर की मदद से मिट्टी में मिला दें। इस प्रकार यह अवशेष मिट्टी में मिलकर पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ा देते हैं।
किसान चंद्र स्वामी ने बताया कि अवशेषों को जलाने से मृदा की सतह का तापमान 60 से 65 डिग्री से.ग्रे. हो जाता है। ऐसी दशा में मिट्टी में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणु जैसे वैसीलस, सबिटिलिस , क्यूटोमोनार, ल्यूरोसेन्स, एग्रो बैक्टीरिया, रेडियोबेक्टर, राइजोबियम, एजोटोवेक्टर, एजोस्प्रिलम, सेराटिया, क्लेब्सीला, वोरियोवोरेक्स आदि नष्ट हो जाते हैं। इन्हीं जीवाणु की उपलब्धता होने पर भरपूर उत्पादन होता है। कृषि अवशेष जलाने से खेतों में दीमक एवं खरपतवार की समस्या पैदा होती है।