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जोड़ों में होने वाले दर्द और सूजन से शुरू होने वाली आर्थराईटिस बीमारी एक ऐसा रोग है, जिसका खतरा उम्र बढ़ने के साथ बढ़़ता ही चला जाता है। आंकड़ों की मानें, तो भारत में 15 प्रतिशत से अधिक आर्थराईटिस (arthritis) के रोगी पाए जाते है। बदल रहे लाइफस्टाइल और गलत खानपान से दिनों दिन युवा वर्ग में भी इसका खतरा बढ़ रहा है। हांलाकि ज्यादा आंकड़ा 65 वर्ष से अधिक उम्र वालों का ही है, जो गठिया से पीडित हैं।
रिसर्च में ये भी पाया गया है कि पुरूषों की तुलना में महिलाओं में इस रोग के लक्षण ज्यादा देखने का मिलते हैं। खासतौर से अधिक वज़न वाले लोगों में इसका खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा यूरिक एसिड (uric acid) का बढ़ना भी गठिया का ही एक कारण है। सादा खाना और आम लाइफस्टाइल सुनने में थोड़ा सा बोरिंग लगता है। मगर असल में यही जिंदगी का सार है और एक अच्छी जीवनशैली का आधार है।

वंदना सैगल का संघर्ष
संतुलित आहार न केवल बीमारियों(diseases) को रोकने में मददगार(helpful) साबित होता है, बल्कि बहुत से रोगों को ठीक करने में भी अहम रोल अदा करता है। आइए आपको बताते हैं कि किस तरह से हम अपनी जीवनशैली को बदलकर आर्थराईटिस पर काबू पा सकते हैं। इसका अंदाज़ा वंदना सैगल को देखकर लगाया जा सकता है, जिन्होंने अपने हौंसले और जज़्बे से न सिर्फ इस बीमारी पर लगाम कसी, बल्कि अपनी जीवनशैली को कुछ इस कदर बदला डाला कि वो अन्य लोगों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बन गई।
कहते हैं न
जब आंखों में अरमान लिया, मंजिल को अपना मान लिया।
फिर मुश्किल क्या आसान है क्या, जब ठान लिया तो ठान लिया।
ऐसी ही एक शख्सियत है वंदना सैगल, जो जीवन में दृढ़ संकल्प के साथ कुछ इस कदर आगे बढ़ीं कि फिर पीछे मुड़कर नही देखा। उनके जीवन में लाखों मुश्किलें आई, मगर विश्वास नहीं डगमगाया। हर चैलेंज को एक्सेप्ट किया और पहले से ज्यादा हिम्मत के साथ आगे बढ़ती चली गई।
स्कूली तालीम हासिल करने के बाद वंदना सैगल ने जवाहरलाल नेहरू युनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के बाद उनका विवाह हो गया और वो अपने पति के साथ विदेश में रहने लगीं। विवाह के कुछ सालों बाद उन्हें आर्थराईटिस नाम की बीमारी ने घेर लिया। मन ही मन वो इस बीमारी से परेशान हो चुकी थीं। इन मुश्किल हालात में उन्हें अपने परिवार का पूरा सहयोग मिला। उन्हें अपने पति और बाकी घरवालों ने हर कदम पर सपोर्ट किया।
कैसे बनाया खुद को मज़बूत
शारीरिक तौर पर वे भले ही कुछ नहीं कर पा रहीं थीं, मगर मन से वे नहीं हारी। हाथों के ज्वाइंटस में रहने वाले दर्द को लेकर वे डॉक्टरों की एक टीम से मिली। दरअसल, आर्थराईटिस उनके हाथों में ही था। इससे उनके हाथों की उंगलियों के मसल्स कमज़ोर हो रहे थें। वो शरीर के अन्य अंगों पर प्रहार करता इससे पहले ही मेडिकल जांच और सलाह के अनुरूप उन्होंने अपनी जीवन शैली को बदला।
दो सिलाइयों ने कर दिखाया कमाल
दरअसल, डॉक्टरों ने उन्हें रेगुलर हैंड मूवमेंट की सलाह दी थी और दो सिलाइयों से बेहतर हैंड मूवमेंट और कोई नहीं हो सकती थी। अब शुरूआती स्टेज होने के कारण उन्होंने दवाएं लेनी शुरू की। देखते ही देखते उन्होंने बुनाई को अपने लाइफ स्टाइल का हिस्सा बना लिया था। ताकि उनके हाथों की मूवमेंट चलती रहे।
अब वंदना ने इस चैलेंज को एक्सेप्ट किया, जिसमें शुरूआत में उन्हें निटिंग करने में उंगलियों में दर्द महसूस होता था। पर कुछ कर गुज़रने की सोच ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। अब उन दो सलाईयों ने वो चमत्कार कर दिखाया, जो सालों से चल रही दवाएं भी नहीं कर पा रहीं थीं। अब दर्द कम होने लगा और हाथों की मुवमेंट बढ़ती चली गईं।
दूसरों के प्रति नेक भावना रखने वाली वंदना जी ने न सिर्फ खुद को इस रोग से मुक्त किया बल्कि अन्य लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी लेकर आई। उन्होंने बहुत सी महिलाओं को निटिंग के इस काम से जोड़ा। इन दिनों वंदना जी ब्रेस्ट कैंसर की चपेट में है और हमें यकीन है कि इसी तरह बुलंद हौसलों के दम पर वो जिंदगी की इस बाज़ी को भी जीतकर दिखाएंगी।
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